कई बार हम रिश्तों /चीजों को हमेशा वैसा ही देखना पसंद करते हैं जैसा हम चाहते हैं पर अक्सर वो वैसे होते नहीं और शायद हो भी नहीं पाते पर फिर भी हम यह मानते रहते हैं की वो वैसे ही हैं जैसा हम चाहते हैं तब तक जब तक जिन्दगी हमें झिंझोड़ कर उनकी सही तस्वीर न दिखा दे ..पर अफ़सोस तब तक बहुत देर हो चुकी होती है
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