Monday, 31 August 2009

आत्मसमर्पण

आत्मसमर्पण कहानी
उम्र के इस मोड़ पर आ कर आज प्रभात खुद को असहाय अनुभव कर रहा था यूँ देखा जाए तो आजीवन वेह गिरता संभालता और फिर गिरता ही रहा है लेकिन अब शायद पुरुष दर्प से दीप्त उसका अंहकार अपनी मंद हो रही शक्ती से आहात होकर हार मानने को मजबूर था उसके असभ्य व्यवहार और अनर्गल प्रलाप के समक्ष उसका युवा बेटा आकर खडा हो जाता तो उसकी बद से बदतर होती जा रही वाणी और भी दुगनें आक्रोश से गूंजना चाहती पर अब उसका  बलिष्ट बेटा भी अपनी सखत आवाज से उसे डरा क ता था किसी पल तो प्रभात को अपनें किये पर पश्चात्ताप होता पर फिर दूसरे ही पल वेह वही क्रूर ,निर्दयी ,कठोर व्यक्ती बन जाता जिसे कोई नहीं पसंद नहीं करता था खुद वेह भी नहीं .....!!!उसकी महत्वकान्षाओं की भट्टी में किस किस की आहुती दी गयी यह जानने की उसनें कभी कोशिश भी नहीं की ..अगर की होती तो शायद आज हालात कुछ बेहतर होते ....घर के अँधेरे कोनें भी जैसे उसे अस्वीकार कर देते हो कुछ ऐसा ही विरक्त और अपमानित वेह अनुभव करता था ...सब अपनी ही करनी का फल है ...पर अगर कोई वकत रहते यह समझे तब न......'दम्भी व्यक्ती अपना आज मजबूत करनें के फेर में कल खराब कर देता है....'

व्हील च्येर पर बैठी मधु की आँखों से जार जार आँसू बहते ...जीवन भर पति की प्रताड़ना सहते हुए उसने शायद इतनें आँसू न बहाए हों ...जितनें अब उसकी दयनीय स्थिति देख कर वेह बहाती थी .... पूरा शरीर लकवे की चपेट में आ चुका था ...न बोल सकती थी न चल सकती थी ...बस देख और समझ सकती थी ....इश्वर की मर्जी कहें या होनी की चाल ....बेटा रवि माँ को पू ज ता था पर पिता से ठीक से बात भी नहीं करता था ...करता भी कैसे ....जैसे ही रवि सामनें आता प्रभात का अनर्गल प्रलाप शुरू हो जाता ....हर बात में नुक्स ...हर काम को बिना सोचे गलत कहना प्रभात की आदत बन चुकी थी .. पिता को सम,झाने की तो  उ ooooसनें अब कोशिश क र नी ही छोड़ दी थी ....
...उधर बेचारी मधु का हृदय एक तरफ़ औलाद को अपनी छाया में ले लेने का होता तो दूसरी तरफ उसकी आँखें करुण विनती सी करती प्रतीत होती जैसे अपनें पति से कह रही हों ...बस करें ..अब चुप हो जाएँ ...बच्चे ही तो हैं ......पर उसकी करुण विनती के स्वर कभी प्रभात के कानों तक नहीं पहुँचे थे तो अब मूक विनती को प्रभात कैसे समझता उलटा बेटे के जाते ही वेह अपाहिज ,लाचार पत्नी पर अपनी भडास निकालना शुरू हो जाता ......बेचारी मधु चुप चाप सुनती रहती जीवन भर उसनें कभी किसी बात में पति का विरोध न किया था फिर अब तो .....

जब कुछ देर बाद भी पिता का प्रलाप न रुकता तो रवि माँ को अपनें कमरे में ले गया  ....और माँ के माथे को चूमते हुए बोला "तुम मत रोओ माँ मैं ठीक हूँ ...मुझे बुरा नहीं लगता अब ....बचपन से देख रहा हूँ अब तो मुझे भी आदत हो गयी है" कह कर माँ के गले लगगया और चुपके से उसके आँचल से अपनें आँसू पोंछ लिए ...उधर प्रिया एक कोनें में खडी माँ बेटे के अद्वित्य प्रेम को महसूस कर रही थी और मन ही मन प्रार्थना कर रही थी "हे! इश्वर मुझे भी ऐसा ही बेटा "...और दूसरे ही पल वेह भी सास की गोद में सर रख देती ...मधु अपनें अश्रु जल से दोनों पर स्नेह -वर्षा करनें लगी.... मधु रोते रोते अचेत हो गयी ..ऐसा अक्सर होता था ..प्रभात के दुर्व्यवहार ने ही मधु की यह हालात बना दी थी एक्यूट डिप्रेशन के चलते वेह कितनी ही बार अपना मानसिक संतुलन खो चुकी थी पिछली बार के अटैक ने उसे अपाहिज बना दिया था ...पर प्रभात के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं आया ....जो इंसान दिन के चारों पहर पैसे और सफलता के मद में चूर रहे उसे फर्क भी क्या पड़ सकता है ...'कोई मरे चाहे जिए उसकी बला से .....'
रवि ने माँ को व्हील चिअर से उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया ...प्रिया को माँ के पास सोने का कह कर खुद सोफे पर सो गया ....रवि की आँखों में नींद नहीं थी ...वेह सोच रहा था ...प्रिया माँ बनने वाली है ...दूसरा महीना चल रहा है ..ऐसी हालत में रोज रोज की कलह से उसे कितनी तकलीफ होती होगी .....माँ की हालत भी अब बर्दाशत नहीं होती ..."मुझे जल्दी ही कुछ करना होगा" .....सोचते हुए उसकी आँख लग गयी ....

सुबह रवि बहत जल्दी तैयार हो गया ..प्रिया ने बताया माँ रात को एक बार जगीं थीं ...रवि ने माँ के पैर छुए और दफ्तर चला गया ...शाम को लौटा तो उसके हाथ में ट्रान्सफर लैटर था तीन दिन बाद ही उसे पूना के ऑफिस में ज्वाइन करना था ...वेह माँ के पास गया उनका हाथ अपनें हाथ में ले कर बोला ..." मेरा ट्रान्सफर हो गया है माँ...हमें कल ही निकलना होगा ..."कह कर रवि कुछ देर रुका ...फिर संयत स्वर में बोला "..आप मेरे साथ चलोगी न ..?प्रियाका पेर भारी है ..मैं नौकरी पर चला जाऊंगा तो वेह अकेली हो जायेगी ..".रवि जानता था उसका यह आग्रह माँ नहीं टाल पायेगी वरना पिता जी को छोड़ कर जानें की बात तो माँ ने कभी सोची भी नहीं ......
रवि माँ की आँखो ं की बेचेनी पढ़ सकता था ......तुंरत ही बोला ...माँ पिता जी के पास बुआ को बुला लूं ..?
मधु की आँखों मैं एक संतोष का भाव उभरा ..एक बुआ ही थीं जिनके सामनें प्रभात शात रहता था ...बुआ शाम को ही आगईं ..रवि बुआ का बहुत आदर करता था ...
दुसरे ही दिन रवि प्रिया और माँ के साथ पूना के लिए रवाना हो गया ...


नयी नौकरी ज्वाइन किये हुए रवि को आज दस दिन हो गए थे ....लगभग रोज ही वेह पिता जी से फ़ोन पर बात करता था ....प्रभात तो बस हाँ हूँ में ही जवाब देते ...बुआ से बात कर के कुछ धेर्य होता की वहाँ सब ठीक है ....रवि को रात दिन एक ही सोच थी माँ को यहाँ ले आया हूँ पर पिता जी ...सोच कर रवि के दिल में एक टीस उठी पिता को यूँ छोड़ कर आना उसे अच्छा नहीं लग रहा था पर वेह क्या करता अगर हालात इसी तरह चलते रहते तो कुछ न कुछ अनिष्ट जरूर हो जाता बस एक ही बात से उसका मन कुछ आश्वस्त हो जाता की शायद जगह और हालात बदलनें से माँ की तबियत में कुछ सुधार हो ...?

तभी फ़ोन की घंटी घन घना उठी ...फ़ोन पर बुआ थीं उनकी आवाज से लगा की वेह कुछ परेशान हैं ..पर उन्होंने कुछ बताया नहीं बस इतना कहा की" आज दो दिन से प्रभात ने कोई बात नहीं की ..न ही ठीक से कुछ खाया ही है .....पर तुम परेशान मत होना ...आतम विश्लेषण उसके लिए जरूरी भी है हो सकता है इस सब का परिणाम कुछ अच्छा ही निकले ...." कह कर बुआ ने रवि को आश्वस्त करनें की कोशिश की
रवि का चेहरा बता रहा था की वेह पिता को लेकर चिंतित है ....जायज भी था ..जरूरत से जयादा और अधिकतर व्यर्थ बोलनें वाला व्यक्ती अचानक चुप हो जाए ...बात परेशान होनें वाली ही थी.... अक्सर जब हम सही गलत का फैसला नहीं कर पाते तो सब कुछ वक्त पर छोड़ कर निश्चिंत होनें की कोशिश करते है यहाँ हमें यह ज्ञात होता है की एक शक्ती है जिसनें पूरा नियंत्रण अपनें हाथमें ं लिया हुआ है ..हम सब तो उसके हाथ की कठपुतलियाँ हैं
इसी तरह सात दिन और बीत गए ...रवि रोज बुआ को फ़ोन करता पर पिता जी फ़ोन पर नहीं आते रवि की चिंता बदती जा रही थी ...उसनें सोच लिया था वेह पिताजी से मिलनें जाएगा अगर वेह यहाँ आना चाहेंगे तो वेह उन्हें साथ ले आयेगा ....
शाम को ऑफिस से आनें के बाद माँ और प्रिया को मन्दिर ले जाना रवि का रोज का नियम था ....उस दिन भी वेह जब मन्दिर से लोटे तो लॉन में पिता जी को इन्तजार करते पाया ......"प ...पिताजी "कह कर रवि ने उनके चरण स्पर्श किए ...उसके चेहरे से खुशी और हैरानी साफ़ झलक रही थी
प्रिया जैसे ही प्रभात के पैर छूने को झुकी प्रभात ने उसके सर पर स्नेह से हाथ रख दिया ...प्रिया की आंखों से खुशी के आँसू छलक पड़े ...उधर मधु की स्निग्ध , भीगी आँखें पति को सामनें पा मुस्करानें लगीं...रवि का मन माँ के लिए आदर  से नतमस्तक हो रहा था  पिताजी माँ के साथ कितना ही क्रूर व्यवहार क्यों न करैं पर माँ हमेशा मुस्कराती आँखों से ही उनका स्वागत करती हैं ...   प्रभात ने आगे बढ कर मधु की व्हील चेयर को थाम लिया ...रवि के लिए यह सुखद आर्श्चय का पल था ...प्रभात मधु को अन्दर ले गए... ..कमरें में ले जाकर प्रभात मधु के सामनें आये और अपनें घुटनों पर बैठ गए ...दूसरे ही पल प्रभात नें मधु के घुटनों पर अपना सर रख दिया ...निःशब्द आत्म समर्पण ...रवि को अपनीं आँखों पर यकीन नहीं आ रहा था ....पर यह सच था ... कई बार अपनों से दूर होनें पर ही शायद हमें उनकी उपस्थिति  का सही महत्त्व  स्थिति का ज्ञात होता है